महिला एकता मंच द्वारा कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता त्रिशांत शिमलाई द्वारा कार्बेट पार्क व प्राकृतिक क्षेत्रों में इस्तेमाल की जा रही आधुनिक सर्विलांस तकनीक- कैमरा ट्रैप, ड्रोन इत्यादि के प्रभाव को लेकर किए गए शोध से महिलाओं और समाज को परिचित कराने के लिए देवभूमि व्यापार भवन में परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में त्रिशांत शिमलाई ने कहा कि उनका शोध कार्बेट पार्क की छवि खराब करने के लिए नहीं बल्कि वन प्रशासन द्वारा बड़ी मात्रा में किये जा रहे ड्रोन एवं कैमरा ट्रेप के समाज पर और उसमें भी खास तौर पर महिलाओं पर पड़ रहे प्रभावों को लेकर है। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में जहां भी कैमरे लगे होते हैं वहां पर लिखा होता है कि आप कैमरे की नजर में है परंतु वन एवं ग्रामीण क्षेत्र में लगाए गए कैमरों को लेकर इस तरह की चेतावनियां नहीं दी जाती हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018-19 में 14 महीने इस क्षेत्र में रहकर महिलाओं, ग्रामीणों व वन विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ बातचीत करने के बाद ही उन्होंने अपना शोध प्रकाशित किया है। उनका शोध तथ्यों पर आधारित है तथा वह इसके लिए पार्क प्रशासन के प्रति जवाब देह नहीं है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ने कहा कि जंगल एक ऐसा स्थान है जहां महिलाएं गाती हैं,हंसती हैं, आपस में बातें करती हैं, अपने दुख-दर्द आपस में बांटतीं हैं, कई बार रोती भी हैं। कैमरा ट्रेप के कारण उनकी गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं तथा उनकी निजता का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में एक कैमरे में शौच के लिए गई महिला का फोटो स्थानीय व्हाट्सएप ग्रुप पर वायरल हो गया था। उन्होंने वन व पार्क प्रशासन से सवाल किया कि उनके द्वारा लगाए गए कैमरों से मानव वन्य जीव संघर्ष कितना रुका है। कितनी बार गांव वालों को गांव में जंगली जानवरों के घुसने की सूचनाएं दी गई हैं।
उन्होंने बताया कि उनके शोध के दौरान यह तथ्य भी प्रकाश में आया कि वन प्रशासन ड्रोन का इस्तेमाल ग्रामीणों को डराने के लिए भी कर रहा है। उन्होंने बताया कि जल्द ही वे बुक्सा जनजाति एवं गूजर समुदाय पर आधुनिक सर्विलांस तकनीक पड़ रहे प्रभाव को लेकर अपने शोध को सार्वजनिक करेंगे । उन्होंने कहा कि पार्क प्रशासन द्वारा उनके शोध को लेकर मांगे गए जवाब का विधि विशेषज्ञों के माध्यम से उचित फोरम पर जवाब प्रस्तुत करेंगे।
सांवल्दे ईडीसी अध्यक्ष महेश जोशी ने कहा कि पार्क प्रशासन को त्रिशांत के शोध से सबक ग्रहण करने की जरूरत है तथा प्रशासन ईडीसी अध्यक्षों से झूठे पत्र लिखवा कर उनकी रिसर्च को झुठलाने की कोशिश न करे। उन्होंने कहा कि यदि वन प्रशासन की सर्विलांस तकनीक कारगर होती तो इतनी बड़ी संख्या में जंगली जानवरों के हमलों में लोग नहीं मारे जा रहे होते।
ललिता रावत ने शोधकर्ता त्रिशांत का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जंगल हम महिलाओं का मायका है। त्रिशांत की रिसर्च ने इस बात को उजागर किया है कि आधुनिक कैमरा ट्रेप व ड्रोन के इस्तेमाल से वन अपराध तो रुक नहीं रहे हैं परंतु महिलाओं की निजता का हनन हो रहा है। उन्होंने कहा कि आबादी क्षेत्र से तत्काल कैमरे हटाए जाए तथा जहां भी कैमरे लगाए गए हैं वहां पर कैमरा लगा है इस को लेकर जनता को जागरूक किया जाए।
समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार ने कहा कि प्रशांत की रिसर्च बंद कमरे में बैठकर लिखी गई रिसर्च नहीं है बल्कि उन्होंने इसके लिए उन्होंने 14 महीने तक कड़ी मेहनत की है और आधुनिक सर्विलांस तकनीक के इस्तेमाल के दुष्प्रभावी पक्ष को भी बखूबी उजागर किया है।
कार्यक्रम में विद्यावति शाह, ऊषा पटवाल, अंजलि, नीमा आर्य, परी देवी, रेखा जोशी, धना तिवारी, सुनीता देवी, गंगादेवी, माया नेगी, सरस्वती जोशी सीमा तिवारी, लक्ष्मी, गिरीश चन्द्र, ललित उप्रेती, सोवन तड़ियाल, सूरज सिंह, लालता प्रसाद समेत दर्जनों गांवों से महिलाएं शामिल रहीं।
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